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शिंगल्स – आम लक्षणों की पहचान कैसे करें

DocFinder, Shutterstock
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शिंगल्स (Shingles) एक वायरस जनित बीमारी है जो ज़्यादा उम्र (50 वर्ष से अधिक) के लोगों में अधिक आम होती है और जिसकी पहचान एक विशिष्ट चकत्ता होती है। बीमारी में भारी दर्द होता है, और उपचार नहीं करने की स्थिति में, अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को जन्म दे सकती है – जिसकी वजह से यह विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि इस बीमारी का यथासंभव जल्द से जल्द उपचार किया जाए। बीमारी के कारण और एक शुरूआती अवस्था में शिंगल्स के लक्षणों की पहचान करने के तरीकों के बारे में जानने के लिए पढ़ना जारी रखें।

शिंगल्स के कारण

शिंगल्स (जिसे हर्पीस ज़ोस्टर के नाम से भी जाना जाता है) वैरिसेला ज़ोस्टर वायरस (varicella zoster virus, VZV) के कारण होती है। वैरिसोला ज़ोस्टर वायरस का संबंध हर्पीसवायरस परिवार से होता है और यह बूंद संक्रमण के माध्यम से एक व्यक्ति से अगले व्यक्ति में पहुँचता है। एक बूंद संक्रमण का तात्पर्य पैथोजन युक्त छोटी-छोटी बूंदों के उत्सर्जन से होता है जब एक संक्रमित व्यक्ति छींकता है, खांसता है या बात करता है। इसका मतलब है कि व्यक्ति के सांस छोड़ने पर पैथोजन हवा में फैलते हैं – और इसके बाद किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा सांस के साथ शरीर में प्रवेश करते हैं।

वैरिसेला ज़ोस्टर वायरस मनुष्यों में दो बीमारियों के लिए ज़िम्मेदार होता है: चेचक और शिंगल्स। वायरस से प्राथमिक संक्रमण सदैव चेचक के रूप में सामने आता है। चेचक के लक्षणों के अंततोगत्वा समाप्त हो जाने के बावजूद, वायरस व्यक्ति के शरीर में उनके शेष जीवन भर बना रहता है – लेकिन निष्क्रिय (सुषुप्त अवस्था) में रहता है। एक मज़बूत प्रतिरक्षा तंत्र वाले लोगों के लिए, शरीर आम तौर पर वायरस को रोके रखने में समर्थ होता है इसलिए उन्हें दोबारा बीमारी की शुरूआत से पीड़ित नहीं होना पड़ता। यदि किसी व्यक्ति का प्रतिरक्षा तंत्र किसी अन्य दीर्घकालिक बीमारी, तनाव या एक आम अस्वास्थ्यकर जीवनशैली आदि की वजह से कमज़ोर होता है, तो सुषुप्त वायरस बाद में कभी पुनः सक्रिय हो सकता है और बीमारी के एक अन्य मामले की वजह बन सकता है। हालाँकि, जब वायरस पुनः सक्रिय होता है, तब व्यक्ति में चेचक के एक और समस्या की जगह, शिंगल्स विकसित हो जाता है।

अनुमानों के मुताबिक लगभग 95% लोग वैरिसेला ज़ोस्टर वायरस के वाहक होते हैं, जिनमें से ज़्यादातर तब संक्रमित हुए होते हैं जब वे बच्चे थे। जहाँ बच्चों में चेचक का होना सामान्य है, बच्चों में शिंगल्स के मामले बहुत ही कम होते हैं; अगर वायरस पुनः सक्रिय होता है, तो यह अक्सर जीवन में काफ़ी बाद में होता है।

शिंगल्स का विवरण

शिंगल्स का कम प्रचलन वाला नाम, हर्पीस ज़ोस्टर, इसके लक्षणों की ओर इशारा करता है: “ज़ोस्टर” शब्द ग्रीक भाषा में बेल्ट के लिए शब्द से आया है और एक आम चकत्ते की ओर इशारा करता है, जो पीठ पर और/या छाती पर एक बेल्ट या पट्टी की तरह दिखता है। हालाँकि, शिंगल्स का चकत्ता चेहरे, भुजाओं और पैरों को भी प्रभावित कर सकता है।

निष्क्रिय होने के दौरान, वायरस कपालीय तंत्रिका गैंग्लिया (cranial nerve ganglia) में – जो अन्य चीज़ों के अलावा, चेहरे में उद्दीपन के लिए ज़िम्मेदार होती है – और स्पाइनल गैंग्लिया (spinal ganglia) में रहता है। स्पाइनल गैंग्लिया मेरुदंड के साथ-साथ चलने वाली तंत्रिका कोशिकाएँ होती हैं। जैसे ही वैरिसेला ज़ोस्टर वायरस पुनःसक्रिय होता है, यह तंत्रिका तंतुओं के साथ-साथ चलने लगता है – जिसकी वजह से संबंधित तंत्रिका ऊतक में सूजन और जलन होने लगती है। बीमारी से संबंधित चकत्ते का विशिष्ट पैटर्न मेरुदंड से जुड़ी तंत्रिकाओं के मार्ग की वजह से होता है; जो संपूर्ण धड़ (छाती, पेट, पीठ और कूल्हा) में एक बेल्ट रूपी आकार में फैलता है और त्वचा के विशिष्ट क्षेत्रों में पहुँचती हैं (जिन्हें डर्मोटोम कहते हैं), चकत्ता त्वचा पर शरीर के प्रभावित क्षेत्र में एक पट्टी के रूप में उत्पन्न होता है।

शिंगल्स के सामान्य लक्षण

जैसा कि अन्य कई बीमारियों के मामले में होता है, शिंगल्स भी एक तथाकथित प्रोड्रोमल अवस्था से शुरू हो सकता है, जिसके लक्षणों में बीमारी के सामान्य संकेत जैसे थकान, बुखार और आलस्य शामिल हैं। बीमारी की यह शुरूआती अवस्था औसतन तीन से पाँच दिन तक रहती है। बीमारी से पीड़ित लोग पैरिस्थीसिया का अनुभव कर सकते हैं, जो त्वचा के प्रभावित क्षेत्र में पिन या सुई जैसी असामान्य संवेदना का या संवेदनाशून्य अहसास होता है।

जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, त्वचा में ये असामान्य संवेदनाएँ दर्द का रूप ले लेती हैं। चूँकि शिंगल्स एक ऐसी बीमारी है जो एक व्यक्ति की तंत्रिकाओं को सीधे तौर पर प्रभावित करती है, इसलिए इसके लिए न्यूरोपैथिक दर्द शब्द का उपयोग किया जाता है। ज्यादातर मरीज इसे तेज और बेहद अप्रिय दर्द के रूप में वर्णित करते हैं। ज्यादातर मामलों में, यह दर्द सूजन और जलन या शरीर बिधने की संवेदनाओं का रूप ले लेता है जो अचानक से होता है और जिसके साथ एक असुखकर खुजलाहट भी होती है।

शिंगल्स में होने वाला विलक्षण चकत्ता त्वचा के प्रभावित क्षेत्रों में लालपन के साथ शुरू होता है। 12 से 24 घंटों के भीतर, इन क्षेत्रों में छाले उत्पन्न हो सकते हैं। पहली बात, इन छालों में पारदर्शी द्रव भरा होता है; जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, यह द्रव – जो वायरस का वाहक होता है – धुंधला हो जाता है, जबकि और अधिक छाले उत्पन्न होते रहते हैं और साथ जुड़कर एक बड़ी पट्टी का निर्माण करते हैं और आखिर में फूट जाते हैं। इसके बाद छालों के ऊपर पपड़ियाँ पड़ने लगती हैं, और जैसे-जैसे वे हटती हैं, चकत्ता धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। सामान्य तौर पर कहा जाए, तो शिंगल्स का चकत्ता शरीर के केवल आधे हिस्से में विकसित होता है और दूसरे हिस्से में नहीं।

स्वस्थ प्रतिरक्षा प्रणाली वाले मरीजों में, शिंगल्स के लक्षण आम तौर पर दो से तीन सप्ताह तक बने रहते हैं। हालाँकि, यह प्रत्येक मरीज के आधार पर भिन्न-भिन्न होता है। इसके अतिरिक्त, कुछ विरले मामलों में, बीमारी त्वचा के चकत्ते (जिसे ज़ोस्टर साइन हर्पीट कहते हैं) विकसित हुए बिना बढ़ सकती है। इन मामलों में, बेल्ट के आकार वाले चकत्ते मौजूद नहीं होने के बावजूद मरीजों को त्वचा के प्रभावित हिस्सों में अत्यधिक जलन, शरीर बेधने वाली और खुजली की संवेदनाओं का अनुभव होता है।

शिंगल्स एक संक्रामक बीमारी है। हालाँकि, चेचक के विपरीत, शिंगल्स का प्रसार बूंद संक्रमण से नहीं होता क्योंकि वायरस केवल छालों के द्रव में मौजूद होता है – जिसकी वजह से यह द्रव बीमारी का वाहक होता है। इसके अलावा, लोगों में शिंगल्स केवल तब विकसित हो सकता है यदि वे अतीत में चेचक के साथ बीमार पड़ चुके हैं, क्योंकि वैरिसेला ज़ोस्टर वायरस के प्रारंभिक संपर्क का परिणाम शुरूआती बीमारी में सदैव चेचक होता है।

शिंगल्स के लक्षण एक नज़र में:

  • बीमारी की शुरूआती (प्रोड्रोमल) अवस्था: सामान्य थकावट, बुखार, आलस्य
  • त्वचा के प्रभावित हिस्सों में असामान्य संवेदनाएँ**: पिन और सुई, स्पर्श करने पर मंद अहसास
  • दर्द: अचानक से वेधन, जलन और खुजलाहट की संवेदनाएँ
  • छालों का निर्माण: छाले, जो शुरूआत में एक पारदर्शी द्रव से भरे होते हैं, समय के साथ अस्पष्ट होते जाते हैं, बेल्ट जैसी पट्टियों का निर्माण करते हैं।
  • चकत्ते केवल शरीर के आधे हिस्से पर होते हैं।
  • स्वस्थ प्रतिरक्षा तंत्र वाले लोगों में, गंभीरता पर निर्भर करते हुए, लक्षण आम तौर पर दो से तीन सप्ताह तक देखने को मिलते हैं।

जोखिम कारक, संभावित जटिलताएँ और द्वितीयक बीमारियाँ

जोखिम कारक

शिंगल्स खतरनाक और दुर्बल करने वाली जटिलताओं और द्वितीयक बीमारियों को जन्म दे सकता है, विशेष तौर पर उन लोगों में जिनका प्रतिरक्षा तंत्र उनकी मौजूदा बीमारियों के चलते कमज़ोर हो गया है (जैसे, एचआईवी पॉज़िटिव लोग या कैंसर के मरीज) और बूढ़े लोगों में, जिनका प्रतिरक्षा तंत्र उनकी उम्र की वजह से स्वस्थ वयस्कों की तुलना में कमज़ोर होता है। निम्नलिखित जोखिम कारक भी बीमारी उत्पन्न होने का जोखिम बढ़ने की वजह हो सकते हैं: अल्ट्रावायलेट रेडिएशन: गंभीर रूप से धूप से जलने से न केवल त्वचा का प्रभावित हिस्सा प्रभावित होता है बल्कि संपूर्ण प्रतिरक्षा तंत्र भी कमज़ोर होता है – अर्थात बहुत अधिक अल्ट्रावायलेट रेडिएशन शिंगल्स उत्पन्न होने में योगदान कर सकता है। कीमोथैरेपी: कीमोथैरेपी के दौरान दी जाने वाली दवा न केवल कैंसर कोशिकाओं पर हमला करती है बल्कि संपूर्ण प्रतिरक्षा तंत्र पर भी कुछ समय के लिए तनाव उत्पन्न करती है, जिसकी वजह से इसके शिंगल्स जैसी बीमारियों से ग्रस्त होने का जोखिम बढ़ जाता है। इम्युनोसप्रेसेंट: इम्युनोसप्रेसेंट (Immunosuppressants) दवा का एक प्रकार होते हैं जो शरीर के आंतरिक रक्षा तंत्र की कार्यप्रणालियों को सीमित करते हैं – जिसकी वजह, उदाहरण के लिए, ट्रांसप्लांट के बाद शरीर द्वारा अंगों या ऊतकों को अस्वीकार करने से रोकना या गंभीर अलर्जिक अस्थमा, प्रतिरक्षा तंत्र के विकारों या स्व-प्रतिरक्षित बीमारियों का उपचार करना होता है। संक्रमण: संक्रमण – सर्दी और जुकाम के साधारण मामलों सहित – भी शिंगल्स विकसित होने की संभावना को बढ़ा सकता है, विशेषकर उन लोगों में जिनका प्रतिरक्षा तंत्र पहले से कमज़ोर होता है, जैसे के उम्रदराज लोग। * तनाव और लंबे समय के शारीरिक और मानसिक बोझ

संभावित जटिलताएँ और द्वितीयक बीमारियाँ

पूरे या ज़्यादातर शरीर को प्रभावित करने वाले हर्पीस ज़ोस्टर के मामले में, वैरिसेला ज़ोस्टर वायर तंत्रिका के मार्गों से अलग-अलग आंतरिक अंगों में फैल जाता है। यदि वायरस केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (मष्तिष्क और मेरुदंड की तंत्रिका संरचनाओं) को प्रभावित करता है, तो इसका परिणामस्वरूप मेनिनजाइटिस और इनसिफेलाइटिस के गंभीर मामले उत्पन्न हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, वायरस कपालीय गैंग्लिया के माध्यम से चलकर आँख और कान, दोनों पर हमला कर सकता है, जिसकी वजह से केराटाइटिस, कंजंक्टिवाइटिस, अंधापन (ज़ोस्टर ऑप्थैलमाइकस) या बहरापन (ज़ोस्टर ओटिकस) हो सकता है।

चूँकि वायरस से प्रभावित हिस्से सूजन और जलन के कारण कमज़ोर हो जाते हैं और जिसकी वजह से उनके बैटीरिया से प्रभावित होने का खतरा बढ़ जाता है, शिंगल्स का एक संभावित परिणाम द्वितीयक बैक्टीरिया संक्रमण होता है। यह तब होता है जब शिंगल्स के चकत्ते की वजह से क्षतिग्रस्त हुआ शरीर का हिस्सा अन्य बैक्टीरिया से संक्रमित हो जाता है। अन्य संभावित परिणामों में पिगमेंट डिसऑर्डर और त्वचा में ब्लीडिंग शामिल हैं, जबकि घाव के निशान भी पड़ सकते हैं – खासकर तब जब छालों के ऊपर पड़ने वाली पपड़ी को उचाड़ा जाता है न कि वे अपने आप निकलती हैं। हालाँकि, चेचक के विपरीत, यह इतना सामान्य नहीं है क्योंकि पपड़ी वाले हिस्से को उचाड़ना काफी दर्द भरा होता है। कुछ मरीजो में बीमारी घटने के बाद प्रभावित हुए हिस्सों में संवेदना संबंधी डिसऑर्डर और लकवे के संकेत भी देखने को मिलते है; सबसे बुरे मामले में, अगर इन लक्षणों का उपचार नहीं किया जाता तो ये हमेशा के लिए रह जाते हैं।

जितने लोग शिंगल्स के साथ बीमार पड़ते हैं और इसका उपचार कराने में विफल रहते हैं, उनमें से करीब 20% लोग बाद में पोस्ट-हर्पेटिक न्यूरेल्जिया से ग्रस्त होते हैं। इस मामले में, त्वचा-आधारित लक्षणों के समाप्त होने के बाद तंत्रिका विकृति का दर्द चार सप्ताह तक बना रहता है। सबसे बुरी हालत में, यह दर्द किसी व्यक्ति में शिंगल्स से पीड़ित होने के बाद वर्षों तक बना रह सकता है।

शिंगल्स का निदान

चूँकि शिंगल्स के कुछ लक्षण इस बीमारी की विशिष्टता होते हैं, इसलिए डॉक्टर सामान्य तौर पर एक बुनियादी शारीरिक जाँच के दौरान बीमारी का निदान करने में सक्षम होता है। इस मुलाकात के दौरान, डॉक्टर त्वचा के प्रभावित हिस्सों की सावधानीपूर्वक जाँच करता है और मरीज से अन्य लक्षणों के बारे में विशिष्ट प्रश्न पूछता है और कि उन्हें ऐसी शिकायतें कब से हैं।

हालाँकि, निश्चित हो जाने के लिए – और साथ ही बीमारी को मनुष्यों में अन्य हर्पीस सिंपलेक्स वायरसों से होने वाली बीमारियों से अलग पहचानने के लिए – डॉक्टर आम तौर पर घाव से नमूना लेगा। इसे एक प्रयोगशाला में भेजकर, या तो सेल कल्चर या पॉलिमरेस चेन रिएक्शन टेस्टिंग के माध्यम से डॉक्टर वायरस स्ट्रेन की उपस्थिति की बिना किसी शक के पुष्टि करता है। वायरस की पहचान परोक्ष रूप से एक एंटीबॉडी टेस्ट के माध्यम से भी की जा सकती है। इसमें वायरस के विरुद्ध एंटीबॉडीज़ के लिए मरीज के खून की जाँच करना शामिल होता है। एंटीबॉडी मनुष्य के प्रतिरक्षा तंत्र का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। इन्हें श्वेत रक्त कोशिकाओं द्वारा उत्पादित किया जाता है, इनकी भूमिका ऐसे किसी बैक्टीरिया, वायरस या बाहरी पदार्थ (सामूहिक रूप से, एंटोजन) से लड़ने की होती है जो शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

शिंगल्स का उपचार

शिंगल्स के लिए विभिन्न प्रकार के उपचार उपलब्ध हैं। प्रत्येक थेरेपी का उद्देश्य तीक्ष्ण लक्षणों और शिकायतों को कम करना और साथ ही साथ बीमारी की वजह से त्वचा में परिवर्तनों का प्रसार सीमित करना होता है। चूँकि शिंगल्स सीधे तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है, इसलिए बीमारी से ग्रस्त लोगों के लिए यथासंभव जल्द से जल्द डॉक्टर के पास जाना और यथासंभव जल्द से जल्द संबंधित उपचार का कोर्स शुरू करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है ताकि जटिलताओं के जोखिम और द्वितीयक बीमारियों की रोकथाम की जा सकती है।

दर्द का उपचार

ज्यादातर मामलों में, गंभीर और तीक्ष्ण दर्द का उपचार करने के लिए मरीजों को ओपिओइड दर्दनाशक (opioid analgesics) लिखे जाते हैं। ओपिओइड दर्दनाशक ताकतवर दर्द-निवारक होते हैं जो ओपिओइड रिसेप्टर (opioid receptors) से जुड़कर व्यक्ति को महसूस होने वाले दर्द को दबाते हैं। ये ओपिओइड रिसेप्टर मुख्य रूप से मष्तिष्क और मेरुदंड में स्थित होते हैं। मरीज को लिखी गई ओपिओइड दवाएँ दर्द के उद्दीपन का प्रक्रमण होने और आगे बढ़ने से रोकती हैं, और इस तरह दर्द को कम करती हैं। कम गंभीर दर्द का उपचार आइब्यूप्रोफ़िन और पैरासीटामॉल जैसी हल्की दर्द-निवारक दवाओं से किया जा सकता है।

त्वचा के चकत्ते का उपचार

शिंगल्स में स्किन चकत्ते का उपचार आम तौर पर लेपों और टिंक्चर से किया जाता है जो छालों को सुखाते हैं। इससे न केवल तीक्ष्ण दर्द दूर होता है, बल्कि व्यक्ति को एक द्वितीयक बैक्टीरिया संक्रमण होने का खतरा भी कम होता है। इसके अतिरिक्त, लेप और टिंक्चर – जिन्हें बीमारी की अवस्था और चकत्ते की गंभीरता के आधार पर विशेष तौर पर बनाया जाता है – स्वास्थ्य लाभ की प्रक्रिया में सहायता करते हैं।

एंटीवायरल थेरेपी

एंटीवायरल थेरेपी मुख्य रूप से 50 साल से अधिक उम्र के उन मरीजों में इस्तेमाल की जाती है जिनमें बीमारी गंभीर होती है और/या प्रतिरक्षा तंत्र कमज़ोर होता है (जैसे, एचआईवी-पॉज़िटिव लोग और कैंसर के मरीज) और या शिंगल्स का चकत्ता उनके चेहरे या गर्दन पर होता है।

बीमारी की हल्की अवस्था वाले 50 साल से कम उम्र के मरीजों के लिए, दर्द के लक्षित प्रबंधन के साथ त्वचा के चकत्ते का लक्षित उपचार आम तौर पर पर्याप्त होता है। एंटीवायरल थेरेपी गर्भवती महिलाओं को भी नहीं दी जाती है, जिन्हें इसकी जगह पर केवल लक्षणों के आधार पर और विशिष्ट हिस्से के लिए उपचार लिखे जाते हैं। एंटीवायरल थेरेपी का उद्देश्य भविष्य में शरीर में वैरिसेला ज़ोस्टर का प्रजनन रोकना होता है। इस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाएँ –जिन्हें वायरोस्टेटिक एजेंट (virostatic agents) कहते हैं – खाई जा सकती हैं या नसों के माध्यम से ली जा सकती हैं। शिंगल्स के लिए एंटीवायरल थेरेपी में इस्तेमाल किए जाने वाले पदार्थों में एसिक्लोविर, फैम्सिक्लोविर और वैलसिक्लोविर शामिल हैं।

स्वस्थ प्रतिरक्षा तंत्र वाले लोगों में, उपचार से काफी अच्छी गुंजाइश होती है; अतएव कुछ ही सप्ताह के उपचार के बाद शिंगल्स के चकत्ते पूरी तरह ठीक हो जाने चाहिए। कमज़ोर प्रतिरक्षा तंत्र वाले मरीजों में बीमारी अधिक जटिल और गंभीर स्वरूप धारण कर सकती है, जिसकी वजह से उनके लिए एक शुरूआती अवस्था में दवाओं के साथ उपचार शुरू करना और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

टीकाकरण

2013 में पहली बार उतारे जाने के बाद, हर्पीज़ ज़ोस्टर टीका एक बार पुनः ऑस्ट्रिया में उपलब्ध है। ऑस्ट्रियन टीकाकरण कार्यक्रम सुझाव देता है कि 50 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों को टीका दिया जाना चाहिए – चाहें वे पहले शिंगल्स से पीड़ित हो चुके हों या नहीं। टीके की सुरक्षा कुछ वर्षों तक बनी रहती है और यह व्यक्ति में बीमारी का गंभीर स्वरूप या पोस्ट-हर्पेटिक न्यूरैल्जिया (post-herpetic neuralgia) विकसित होने से लंबे समय तक रक्षा करता है। इसके बावजूद, टीकाकरण से शिंगल्स होने की संभावना से संपूर्ण सुरक्षा नहीं मिलती। तथापि, यदि टीका लगवाने वाले लोगों में यह बीमारी विकसित होती है, यह आम तौर पर मामूली प्रकार की होती है और अधिक जल्दी से गुजर जाती है।

Sources

Dr Birgit Weinberger, Research Institute for Biomedical Ageing Research, University of Innsbruck; Immunseneszenz und Impfungen im Alter, Ärzte Krone 17/2014, Ärztekrone VerlagsgesmbH [in German]

Dr Robert Müllegger, Department of Dermatology, Wiener Neustadt State Hospital; Update Herpes Zoster, die Punkte 01/2014, MedMedia Verlag und Mediaservice GmbH [in German]

Dr Herbert Kiss, Clinical Division of Obstetrics and Fetomaternal Medicine, Department of Obstetrics and Gynaecology, Vienna; Virusinfektionen in der Schwangerschaft - Varizellen und Herpes zoster, Gyn-Aktiv 03/2011, MedMedia Verlag und Mediaservice GmbH [in German]

Johnson R.W. et al., Postherpetic Neuralgia, New England Journal of Medicine 2014; 371:1526-1533

Robert Koch Institute, Department of Infection Disease Epidemiology; Varizellen (Windpocken), Herpes Zoster (Gürtelrose), RKI-Ratgeber für Ärzte 06/2013 [in German]


Autor: Katharina Miedzinska, MSc